बात ये ज्यादा पुरानी नहीं ...
बीते दिनों की और बचकानी सही,
बीते दिनों की और बचकानी सही,
बच्ची एक छोटी सी...
भोली थोड़ी और कुछ मोटी सी,
हाथ पकड़ के सोती थी,
हंसती थी कभी रोती थी,
हम साथी थे एक दूजे के,
लड़े,झगडे और रूठे थे!
नहीं कोई था साथी अपना,
न कोई ख्वाब,न कोई सपना,
दुनिया अपनी बहुत छोटी थी,
कभी गम,कभी खुशियाँ होती थी!
अब न जाने वो पल कहाँ गए..
मेरे बचपन के दिन खो गए!!.
अब याद तेरी बहुत आती है,
अक्सर हमें रुलाती है,
गुडिया तू घर अपने आया कर ,
मत हमको इतना सताया कर!!
अब याद तेरी बहुत आती है,
अक्सर हमें रुलाती है,
गुडिया तू घर अपने आया कर ,
मत हमको इतना सताया कर!!