पहले मैं एकदम निकम्मा था x 2 ,
लाडला अपनी अम्मा का,
देर से सोना और जल्दी जागना
यारों के साथ, बाजारों में भागना
कुछ इस तरह, मेरी आदत थी
अम्मा को नहीं कोई, शिकायत थी।।
फिर धीरे से में युवा हुआ x 2
हाथ बढ़ा, आसमां छुआ ,
डैडी मुझे, बाइक दिला गए
अरमानों को मेरे, पंख लगा गए ,
कॉलेज की ओर रोज-रोज जाना
दोस्तों के साथ रेस लगाना
कुछ इस तरह, मेरी आदत थी
अम्मा को नहीं कोई, शिकायत थी ।।
अब मेरे विवाह की बारी थी x 2 ,
धड़कनें बढ़ी हुई, होठों पर मुस्कान थी
प्यारी सी सूरत के साथ, अब हम भी रहेंगे ,
सात फेरों के बाद, लव यू कहेंगे
हाथों में हाथ डाल, उसको घुमाना ,
Mall ले जाकर, शॉपिंग कराना ,
कुछ इस तरह, मेरी आदत थी
अम्मा को नहीं कोई, शिकायत थी ।।
फिर जब भ्रम, मेरा टूटा x 2 ,
होश आए और पसीना छूटा ,
उतर गया मोहब्बत का, भूत सारा ,
यार दोस्तों ने भी कर लिया किनारा ,
पत्नी की डांट को ही, परसाद मानना ,
उसकी खुशी को ही, अपनी खुशी जानना ,
कुछ इस तरह , मेरी आदत थी
अम्मा को आज भी, नहीं कोई शिकायत थी ।।
फिर मेरे देश में , एक बीमारी आई x 2,
लॉक डाउन के साथ, बड़ी आफत लाई ,
बीवी रोज-रोज , देने लगी मुझे ताने..
कुकिंग और वाशिंग , तू कुछ नहीं जाने ,
कैसे लाडले थे, तुम अम्मा के ..
बचपन से ही क्या तुम, निकम्मा थे ..
सुन मधुर वाणी को, हंसी बहुत आई
डार्लिंग पहली पंक्ति में ही, ये बात थी बताई ....
कि पहले मै निकम्मा था, लाडला अपनी अम्मा का...
समर्थ रस्तोगी