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6.11.21

भैय्या

दिल बुझे, रात अँधेरी

कैसी ये दिवाली है।

झिलमिल दीपों के बीच

गुमसुम ,खुशियां सारी है।।


तारों.. कि कतार में,

अलग ही दिखते हो

ह्रदय मे सबके सदैव,

तुम ही तो,बसते हो।।


सुख-दुख् के इस मेले में,

आना - जाना रहता है

अमर वो ही कहलाता 

यादों में,जो हर पल रहता है।।


पर्व पर भैय्या इस बार..

रीति नई, एक रचते है,

जिस रक्षा वचन को तुम थे, निभाते

वहीं प्रण, हम बहने करते है।।


निश्चिन्त हो, उस लोक से,..

तुम देखों सब, चुप चाप

हम बहनो के आशीष से,

अब दूर होंगे, सब संताप।।


प्रिये राघव को समर्पित,

ऋचा और विदुषी