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29.8.10

एक ख्वाब

बचपन से थी ख्वाईश मन की,
शीघ्र हो विवाह संपन्न !
सुंदर,गोरी,सुकोमल कन्या,
मचाये जो सबके ह्रदय में कम्पन्न!!

आंखें उसकी बिल्लौरी जैसी,
मखमल जैसे हो गाल!
सुंदर मोहक चेहरे पर,
दम बिखरे हुए बाल!!

पूछे आकर शहर ये सारा,
कहाँ से लाए हीरा प्यारा!
मंद-मंद मुस्का कर बोले,
ऊपरवाला  किस्मत खोले!!

और होगा सफल ये जीवन पूरा,
रहे गर न ये ख्वाब अधूरा!
लेकर सात फेरे संग,
मेरे जीवन में तुम भर दो रंग!!

परिचय

प्रिय मित्रवर ,
                  ब्लॉग की इस विशाल दुनिया में ,मै अभी एक दम नया व् अकेला हूँ ! प्रयास कर रहा हूँ  की आप के इस अति व्यस्त जीवन में कुछ पल हास्य के जोड़ सकूँ ! हलाकि मुझे लेखन का कोई विशेष तज़ुर्बा तो नहीं है , फिर भी ये उम्मीद करता हूँ की आप की टिप्पड़िया ज़रूर ही मेरा मनोबल बढ़ाएंगी !  सदा से ही हास्य सम्बंधित सामग्रियों में मुख्य रूप से सरदार,पत्नी व् दोस्तों का स्थान रहा है, मै भी  इन्ही लोगो पर प्रयोग कर रहा हूँ !   ऐसा ही एक नमूना पेश करता हूँ !!

समर्थ

26.8.10

मौका एक हसीन !!

किस्सा 
आओ  यारो  तुम्हे  सुनाये,  किस्सा  एक  रंगीन 
भाभी  तुम्हारी  मायके  गयी,मौका  था  बहुत  हसीन !
मौका  बहुत  हसीन, उफ़! क्या  था  कहना ,
जी  भर  खाया  पिया  और  जो  चाह  पहना!! 

देर  सवेरे  तक  थे  सोते, मध्य  रात्रि  को  घर  आते,
दूधवाले  की  छुट्टी  कर, वोदका  से  काम  चलते !!

सुबह वो  बहुत  निराली थी, सड़क  एक   दम  खाली थी,
बस  स्टॉप  पर वो  अकेली, न  कोई  सखा   न   सहेली !!

 पास  जा  कर  हम  थम  गए, खुशबु  में  उसकी  जम  गए,
लड़की  थी  वो  स्वीट  एंड  सिम्पल, किताब  पर  उसकी  लिखा  था  डिम्पल!!

खामोशी  थी  छाई हुई, लड़की  कुछ  सकुचाई  हुई,
पर  धीरे से  वो  बोली  हमसे, देखा  है  कही  तुमको, कसम  से!!

झट हरकत में हम भी आये, बिन  पूछे सुब  कुछ बताये,
युही  अपनी  बात बढी, अखियों  से  अखिया  लड़ी!!

एक दिन मिलने की ठानी,बीत रही थी छुट्टियाँ  सारी,
लौट आती जो भाभी तुम्हारी, हो  जाती  मारा -मारी!!

शनिवार का प्रोग्राम बनाया, सेंट लगा खुशबु से नहाया
करनी थी जो प्यारी बातें, सोच-सोच कर हम मुस्काते!!

आखिर वो पल भी आया, देख कर हुस्न सर चकराया,
हेलो!! डियर,बोली वो यूं, प्रेम रस की गोली ज्यो !!

क्लाई-मेक्स पर जब हम आये,भाभी तुम्हारी बहुत याद आयी,
डिम्पल बोली लव यू मिस्टर,याद आ गयी साले की सिस्टर!!

दे सकते नहीं उसको धोखा ??
डिम्पल तो है हवा का  झोका !!



25.8.10

समर्थदास के दोहे!!


     पत्नी पर दोहे  

पर-उपकार करी करी  जग मुआ, सेवक भय न कोय...
खुश कर ले जो पत्नी को, वही तो सेवक होए!!

जाने-अनजाने में, गल्ती कोई जो कीजिए...
चरण-पकड़  शीघ्र आप, क्षमा दान लीजिए!! 

अपनी-अपनी सब कहे, हमारी सुने न कोए...
डाट-डपट  के बीच में, प्रेम कहाँ से  होए!!

प्रेमिका-पत्नी दोउ  खड़े, किसको गले लगाए...
पहली कष्ट देत है,  दूजी  देये  रुलाये!!

पाप  हरे, संकट मिटे, ऐसा कुछ  दीजिए..
वरदान में आप हमे :  आज़ाद फिर से कीजिए!!




            
आप कैसे है ! सभी मित्रो को मेरा सलाम