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14.12.21

शादी के पच्चीस साल हुए

 

शादी के पच्चीस साल हुए                                                                                                           7-12-2021

 

चुपके से मेरे जीवन में , दस्तक दी थी तुमने ,

वर्ष 96 के अंत में.. फेरे लिए थे हमने !

 

चक्करों के चक्कर में, कुछ फस गए ऐसे ..

मदारी के इशारों पर.. नाचे, वानर जैसे !

 

एक से भले २, दो  से भले चार

गृहस्थी बढ़ाने का..बस यहीं था आधार !

                                       डोर मेरी पकड़ कर, कुछ ऐसा तुमने खीचा

बगिया में मेरी ..दो फूलों को सीचा !

 

लाडले थे पापा के , मम्मी के दुलारे

अनिल भाई की शागिर्दी में.. सीखे हुनर सारे !

 

हरकते अपनी सुधार ली,नहीं इसमें कोई WONDER

प्यार कि खातिर आपके.. किया हमने SURRENDER

 

यार दोस्तों  से भी ,कर लिया किनारा

ताकि हँसता रहे.. ये मुखड़ा तुम्हारा !

 

माना जन्नत तुमको, और तुम्ही को भगवान

तुम ही रूखी सूखी.. और तुम ही को पकवान !

 

ऐसा धर्य धारण किया, नहीं जिसका कोई सानी

सुख चैन से कट जाए... बस ये जवानी !

 

ज्ञानी जनों ने कर दिया था, पहले से ही आगाह

मिल जुल कर रहना बन्धु.. जैसे, सुई संग धागा !

 

बदलते रहे खुद को, जीवन भर ,यार

मैडम कहती,करते नहीं… तुम मुझको प्यार !

 

कुछ उलझे -अनसुलझे से,  हम सवाल हुए

देखो यारों .. शादी को 25 साल हुए !

 

सूरत पर हमारी, कभी तो तरस खाओ

लहू पीने में , थोडा तो सकुचाओ ..

 

रहती हावी मुझ पर ,दिन और रात..

प्यारी सखियों से भी,कराती नहीं मुलाकात

 

रहम करो मुझ पर,अब हम बेहाल हुए

देखो यारों.. शादी को 25 साल हुए !

 

                                                                                       ऋचा-समर्थ

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

6.11.21

भैय्या

दिल बुझे, रात अँधेरी

कैसी ये दिवाली है।

झिलमिल दीपों के बीच

गुमसुम ,खुशियां सारी है।।


तारों.. कि कतार में,

अलग ही दिखते हो

ह्रदय मे सबके सदैव,

तुम ही तो,बसते हो।।


सुख-दुख् के इस मेले में,

आना - जाना रहता है

अमर वो ही कहलाता 

यादों में,जो हर पल रहता है।।


पर्व पर भैय्या इस बार..

रीति नई, एक रचते है,

जिस रक्षा वचन को तुम थे, निभाते

वहीं प्रण, हम बहने करते है।।


निश्चिन्त हो, उस लोक से,..

तुम देखों सब, चुप चाप

हम बहनो के आशीष से,

अब दूर होंगे, सब संताप।।


प्रिये राघव को समर्पित,

ऋचा और विदुषी


9.10.21

मायके

 जाती हो जो तुम कभी-कभी,

माइके, मुझे छोड़ कर,

लिखें थे खत जो कभी,

देखता हूँ, खोल कर ।

खुशबू जो बसी थी उनमे,

बेशक वो निराली है,

गुजरें हुए लम्हों की,

सच्ची ये कहानी है ।।


यारों के साथ चौकडी,

भाती, तेरे जाने पर,

भूले हुए, वो किस्से

मैं देखता हूँ, मुड़कर ।

कहने को तो अकेला हूँ,

मगर है भीड़, यारों की

गिनती मे है ये, चन्द-कुछ,

ज़रुरत नहीं, हजारों की ।।


सांझ ढले, जब आता हूँ घर,

सूनापन मुझे खलता है ,

हाथ बढ़ा, खुशियां बांटे

नहीं ऐसा, कोई मिलता है ।

ज़िंदा होता है, कवि तभी,

शब्दों के मोती जोड़कर

जाती हो जब तुम, कभी-कभी

माइके, मुझे छोड़ कर ।।


जन्म दिन की शुभ कामनाए 


समर्थ

9.5.21

उजड़ा-उजड़ा सा शहर..

 

उजड़ा-उजड़ा सा शहर लगता है.. 

जैसे कोई,कुदरत का कहर लगता है,

बिछड़ रहे,है मेरे अपने.. 

बिखर रहे,है कई सपने.. 

घोल गया कोई ज़हर,हवा में लगता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


नीर है,बरसते आँखों से,

गम ही,झलकते बातों में,

दहशत है…ये, सच जान कर,

मेले से दिखते…शमशान पर,

कोई रोक कर,भीड़ से पूछे 

क्या फ़र्क़ ये, उनको भी दिखता,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


घायल है दिल, और ज़ुबाँ बंद है,

ऐ मालिक मेरे, कैसा ये द्वंद है,

खुदखुशी कर रहे, उम्मीद के लम्हें,

शामिल नहीं कोई, किसी के गम में..

गुज़रेगा दौर…कैसे,मालूम नहीं,

यहाँ खून,पानी,हवा... सब बिकता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर दीखता है.. ! 

                                                                      समर्थ*उजड़ा-उजड़ा सा शहर..*


उजड़ा-उजड़ा सा शहर लगता है.. 

जैसे कोई,कुदरत का कहर लगता है,

बिछड़ रहे,है मेरे अपने.. 

बिखर रहे,है कई सपने.. 

घोल गया कोई ज़हर,हवा में लगता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


नीर है,बरसते आँखों से,

गम ही,झलकते बातों में,

दहशत है…ये, सच जान कर,

मेले से दिखते…शमशान पर,

कोई रोक कर,भीड़ से पूछे 

क्या फ़र्क़ ये, उनको भी दिखता,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


घायल है दिल, और ज़ुबाँ बंद है,

ऐ मालिक मेरे, कैसा ये द्वंद है,

खुदखुशी कर रहे, उम्मीद के लम्हें,

शामिल नहीं कोई, किसी के गम में..

गुज़रेगा दौर…कैसे,मालूम नहीं,

यहाँ खून,पानी,हवा... सब बिकता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर दीखता है.. ! 

                                                                      समर्थ