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12.2.15

" वो गुज़रा ज़माना "

इज़हार ऐ इश्क़ पर , पलके झुकाना ,
यूँ  शर्मा कर , नज़रे चुराना। 
हलचल , मचा देता था.
रुख़सार से , ज़ुल्फ़ें हटाना ,
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!

न कोई बन्दिशें  थी ,
न ही कोई, फ़साना ,
सिर्फ एक , ख्वाईश थी 
और एक ही तराना , 
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!

खाली हाथ थे , मगर …  
था जज़्बातों का खज़ाना ,
मिलने का रोज़ हम 
ढूँढ़ते कोई बहाना ,
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!

चेहरे की उदासी ,न भाति मुझको ,
होठों पर तेरे हंसी ,खिलखिलाती मुझको ,
गालों पर बूंदें, लुढ़कते आसुओं की.… 
जानती थी , मेरे दिल को दुखाना  
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!

कभी जब हम मिलते थे ,
फूल गुलशन में खिलते थे ,
बहकते हाथों से ,तस्वीर तेरी बनाना 
हसरतें थाम,आता था खुद को सुलाना 
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!



                                                                                                
                                                                                              समर्थ  रस्तोगी