इज़हार ऐ इश्क़ पर , पलके झुकाना ,
यूँ शर्मा कर , नज़रे चुराना।
हलचल , मचा देता था.
रुख़सार से , ज़ुल्फ़ें हटाना ,
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!
न कोई बन्दिशें थी ,
न ही कोई, फ़साना ,
सिर्फ एक , ख्वाईश थी
और एक ही तराना ,
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!
खाली हाथ थे , मगर …
था जज़्बातों का खज़ाना ,
मिलने का रोज़ हम
ढूँढ़ते कोई बहाना ,
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!
चेहरे की उदासी ,न भाति मुझको ,
होठों पर तेरे हंसी ,खिलखिलाती मुझको ,
गालों पर बूंदें, लुढ़कते आसुओं की.…
जानती थी , मेरे दिल को दुखाना
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!
कभी जब हम मिलते थे ,
फूल गुलशन में खिलते थे ,
बहकते हाथों से ,तस्वीर तेरी बनाना
हसरतें थाम,आता था खुद को सुलाना
याद है मुझको…वो गुज़रा ज़माना !!
समर्थ रस्तोगी