जाती हो जो तुम कभी-कभी,
माइके, मुझे छोड़ कर,
लिखें थे खत जो कभी,
देखता हूँ, खोल कर ।
खुशबू जो बसी थी उनमे,
बेशक वो निराली है,
गुजरें हुए लम्हों की,
सच्ची ये कहानी है ।।
यारों के साथ चौकडी,
भाती, तेरे जाने पर,
भूले हुए, वो किस्से
मैं देखता हूँ, मुड़कर ।
कहने को तो अकेला हूँ,
मगर है भीड़, यारों की
गिनती मे है ये, चन्द-कुछ,
ज़रुरत नहीं, हजारों की ।।
सांझ ढले, जब आता हूँ घर,
सूनापन मुझे खलता है ,
हाथ बढ़ा, खुशियां बांटे
नहीं ऐसा, कोई मिलता है ।
ज़िंदा होता है, कवि तभी,
शब्दों के मोती जोड़कर
जाती हो जब तुम, कभी-कभी
माइके, मुझे छोड़ कर ।।
जन्म दिन की शुभ कामनाए
समर्थ