उजड़ा-उजड़ा सा शहर लगता है..
जैसे कोई,कुदरत का कहर लगता है,
बिछड़ रहे,है मेरे अपने..
बिखर रहे,है कई सपने..
घोल गया कोई ज़हर,हवा में लगता है,
उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !
नीर है,बरसते आँखों से,
गम ही,झलकते बातों में,
दहशत है…ये, सच जान कर,
मेले से दिखते…शमशान पर,
कोई रोक कर,भीड़ से पूछे
क्या फ़र्क़ ये, उनको भी दिखता,
उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !
घायल है दिल, और ज़ुबाँ बंद है,
ऐ मालिक मेरे, कैसा ये द्वंद है,
खुदखुशी कर रहे, उम्मीद के लम्हें,
शामिल नहीं कोई, किसी के गम में..
गुज़रेगा दौर…कैसे,मालूम नहीं,
यहाँ खून,पानी,हवा... सब बिकता है,
उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर दीखता है.. !
समर्थ*उजड़ा-उजड़ा सा शहर..*
उजड़ा-उजड़ा सा शहर लगता है..
जैसे कोई,कुदरत का कहर लगता है,
बिछड़ रहे,है मेरे अपने..
बिखर रहे,है कई सपने..
घोल गया कोई ज़हर,हवा में लगता है,
उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !
नीर है,बरसते आँखों से,
गम ही,झलकते बातों में,
दहशत है…ये, सच जान कर,
मेले से दिखते…शमशान पर,
कोई रोक कर,भीड़ से पूछे
क्या फ़र्क़ ये, उनको भी दिखता,
उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !
घायल है दिल, और ज़ुबाँ बंद है,
ऐ मालिक मेरे, कैसा ये द्वंद है,
खुदखुशी कर रहे, उम्मीद के लम्हें,
शामिल नहीं कोई, किसी के गम में..
गुज़रेगा दौर…कैसे,मालूम नहीं,
यहाँ खून,पानी,हवा... सब बिकता है,
उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर दीखता है.. !
समर्थ
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