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9.5.21

उजड़ा-उजड़ा सा शहर..

 

उजड़ा-उजड़ा सा शहर लगता है.. 

जैसे कोई,कुदरत का कहर लगता है,

बिछड़ रहे,है मेरे अपने.. 

बिखर रहे,है कई सपने.. 

घोल गया कोई ज़हर,हवा में लगता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


नीर है,बरसते आँखों से,

गम ही,झलकते बातों में,

दहशत है…ये, सच जान कर,

मेले से दिखते…शमशान पर,

कोई रोक कर,भीड़ से पूछे 

क्या फ़र्क़ ये, उनको भी दिखता,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


घायल है दिल, और ज़ुबाँ बंद है,

ऐ मालिक मेरे, कैसा ये द्वंद है,

खुदखुशी कर रहे, उम्मीद के लम्हें,

शामिल नहीं कोई, किसी के गम में..

गुज़रेगा दौर…कैसे,मालूम नहीं,

यहाँ खून,पानी,हवा... सब बिकता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर दीखता है.. ! 

                                                                      समर्थ*उजड़ा-उजड़ा सा शहर..*


उजड़ा-उजड़ा सा शहर लगता है.. 

जैसे कोई,कुदरत का कहर लगता है,

बिछड़ रहे,है मेरे अपने.. 

बिखर रहे,है कई सपने.. 

घोल गया कोई ज़हर,हवा में लगता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


नीर है,बरसते आँखों से,

गम ही,झलकते बातों में,

दहशत है…ये, सच जान कर,

मेले से दिखते…शमशान पर,

कोई रोक कर,भीड़ से पूछे 

क्या फ़र्क़ ये, उनको भी दिखता,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर लगता है !


घायल है दिल, और ज़ुबाँ बंद है,

ऐ मालिक मेरे, कैसा ये द्वंद है,

खुदखुशी कर रहे, उम्मीद के लम्हें,

शामिल नहीं कोई, किसी के गम में..

गुज़रेगा दौर…कैसे,मालूम नहीं,

यहाँ खून,पानी,हवा... सब बिकता है,

उजड़ा-उजड़ा सा ये शहर दीखता है.. ! 

                                                                      समर्थ

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